Sunday, March 29, 2015

“रोहित का प्यार”

काफी शांत था उस दिन रोहित , जब वो और उसका भाई जैसा दोस्त सोनू ट्रेन से दिल्ली जा रहे थे| एक महीने पहले दोनों ने जॉब के लिए दिल्ली कि ही एक कंपनी मे अप्लाई किया था और परसो ही दोनो का कॉल लेटर भी आ गया था| तभी कल से ही सोनू जिस तरफ काफी खुश और मजे मे था वही कल से ही रोहित का मूड कुछ खराब सा हो चला था | इसकी वजह उसका घर से दूर जाने का गम नहीं था बल्कि एक और खूबसूरत सी चीज़ थी और वो थी सलोनी | सलोनी रोहित का पहला कॉलेज कृश था और मजे कि बात तो ये थी कि सलोनी और रोहित पिछले दो सालो से एक साथ थे | दोनों मानो एक दूसरे के बिना रह ही नहीं सकते थे | शायद यही वजह थी कि कल जब रोहित ने दिल्ली जाने कि बात कि तो जैसे सलोनी के नीचे से जमीन ही खिसक गयी | वो रोहित को अपने से दूर कहीं नहीं जाने देना चाहती थी और इसी वजह से कल दोनों के बीच काफी बहस हो गयी थी और न जाने कब गुस्से मे रोहित ने रिश्ता तोड़ने कि बात कहे दी | काफी बुरा लगा था शायद सलोनी को और शायद तभी उसने इस्स बात को न चाहते हुये भी हामी भर दी | रोहित ने कई बार माफी भी मांगी | न जाने कितनी बार मैसेज और कॉल भी कि, पर सलोनी ने कोई भी जवाब नहीं दिया | इसी बात को लेकर वो काफी नाराज और परेशान था | एक बार तो उसे लगा कि सोनू को माना केर दे कि वो उसके साथ नहीं जा सकता पर फिर उसने खुद को समझाया और राज़ी हो गया|
सोनू कि बात मान कर ट्रेन मे जल्दी जाने से रोहित को एक फाइदा जरूर हुआ कि उसे विंडो सीट मिल गयी सामने वाली विंडो सीट पर एक बैग रखा था तो सोनू रोहित के बगल ही बैठ गया | रोहित उदास मन के साथ खिड़की से बाहर देखने लगा और सोनू समान को ठीक से ऊपर सेट करने लगा |
अभी ये दोनों कुछ देर बैठे ही थे कि अचानक उस बैग को हटा कर वह एक लड़की बैठ गयी , वो शायद उसी लड़की का ही बैग था | वो आई और रोहित के सामने वाली विंडो सीट पर बैठ गयी , देखने मे काफी सिम्पल, शांत और बेहद खूबसूरत | रोहित ने कुछ देर उसे देखा और फिर बाहर देखने लगा था पर मजे तो सोनू के थे रोहित कि उस लड़की पर कोई रुचि न देखते हुये सोनू ने बात करने कि पहल कि और कुछ ही देर मे सोनू और वो लड़की ऐसे बात करने लगे थे मानो सालो से एक दूसरे को जानते हो |
इन सब के बीच एक बार भी रोहित ने उस लड़की कि ओर शायद ही देखा हो , पर हा वो लड़की जरूर सोनू से बात करते करते  उसकी तरफ देख लेती थी  | कुछ ही देर बाद ट्रेन एक स्टेशन पे रुकी और सोनू पानी कि बोतल भरने नीचे उतर गया , इस बीच जब रोहित ने अचानक लड़की को देखा तो पाया कि वो भी उसे देख रही थी और रोहित के देखने पर बाहर देखने लगी थी| अभी तक सोनू इस लड़की से इतनी बाते कर चुका था कि रोहित ने कुछ और न पूछते हुये सिर्फ इतना पूछा “क्या तुम भी जॉब कि वजह से दिल्ली जा रही हो” | इस पर लड़की ने सिर्फ इतना कहा “जॉब कि वजह से तो नहीं पर जॉब के लिए जरूर जा रही हु , सोचती हु वही कही कोई जब कर लूँगी और वैसे भी किसका मन नहीं करता दिल्ली घूमने और वह बसने का” | उसकी बाते सुन कर कल से उदास बैठे रोहित के चेहरे पे थोड़ी सी मुस्कान आ गयी थी और हा सोनू भी तब तक आ ही चुका था | ट्रेन दुबारा चल पड़ी थी और इसी बीच लड़की ने अपने बैग मे पड़ी खुसबूदार टिफ़िन का बॉक्स निकाला और खोल कर सोनू कि तरफ बढ़ा दिया , सोनू तो जैसे जन्मो से भूखा था पर रोहित ने माना कर दिया | लड़की ने एक बार फिर रोहित कि तरफ टिफ़िन बड़ाई और कहा “आज पहली बार मैंने कुछ बनाया है कम से कम थोड़ा खा कर ये तो बता ही सकता है कि कैसा बना है” | रोहित ने इतना कहने पर एक पूड़ी पे सब्जी रोल कि और खाने लगा | खा पी के पानी पीने के बाद रोहित ने धीरे से सिर्फ इतना एचआई कहा “जितना सोचा था उससे काही जायदा टेस्टी था , शुक्रिया” | इतना सुन कर दोनों धीरे से हसने लगे और फिर रोहित बाहर देखने लगा और सोनू फिर से लड़की से बाते करने लगा |
उनकी बातो के बीच मे न जाने कब मुरब्बे कि बात आ गयी और सोनू ने बताया कि उसे मुरब्बे से कितनी नफरत है | पुराने मुरब्बे देख कर उसे बड़ा बेकार सा लगता है, इतना सुन कर अचानक वो लड़की बोल पड़ी “पुराने मुरब्बे और पुराना प्यार दोनों एक ही तरह होते हैं ,हम सोचते हैं कि खराब हो गए पर वक़्त के साथ उनकी मिठास अपने आप बढ़ जाती है” | इतना सुन कर न जाने क्यू रोहित एक पल उस लड़की को देखता रहे गया और उसके चेहरे पे न जाने क्यू हल्की ही मुस्कुराहट आ गयी |
अब तक ट्रेन भी रुक गयी थी , दिल्ली जो आ गया था | तीनों स्टेशन पे उतरे और साथ चलने लगे और  अब न जाने क्यू रोहित के चेहरे पे वो छोटी मुस्कुराहट बरकरार थी वैसे होती भी क्यू न अगर आपका सच्चा प्यार एक नए शहर मे आपके साथ साथ चल रहा हो तो |
जी हा ये लड़की कोई और नहीं बल्कि सनाली ही थी| जो कि खुद भी दिल्ली चली आई थी यही रोहित के साथ रहे कर जॉब करने | बस इतनी सी थी आज कि कहानी |

“मेरी उड़ान”

मैंने जाना है आज खुद की तासीर को,
अब तो जुनून जागा है मंजिल को पाने का,
अब इसके लिए सारे ज़माने से लड़ पड़ूँगा,
अब बस उड़ना चाहता हूँ मैं, उड़ के रहूँगा।

अपने अंदर की कशमकश से उबरा हूँ आज,
अब तो जाना है ख्वाबो को तवजों देना,
और रुखसत-ए –ज़िंदगी तक देता रहूँगा,
अब बस उड़ना चाहता हूँ मैं, उड़ के रहूँगा।

इस्तक़बाल करता हूँ अपनी इस सोच का,
आज मुझमें ही मुझे जगाया जिसने,
अब खुद का भले ही हो, पर इस सोच का अंत कभी न करूंगा,
अब बस उड़ना चाहता हूँ मैं, उड़ के रहूँगा।


लोगों की थोपी सारी हदों को,
खुद पर खुद ही लगाई उन बंदिशों को,
अब मैं तोड़ कर आगे बढ़ूँगा,
अब बस उड़ना चाहता हूँ मैं, उड़ के रहूँगा।


अब सोचा है मैंने गैरों के दर क्यूँ जाऊँ,
खुद के मुकद्दर को क्यूँ न आज़माऊँ,
और सोचा है जो वो कर के रहूँगा,
अब बस उड़ना चाहता हूँ मैं, उड़ के रहूँगा।


अब उनकी क्यूँ परवाह करूँ मैं,
जो बिना माँगे नसीहत देते फिरते हैं,
खुद को ही हाफ़िज़ समझा करूँगा,
अब बस उड़ना चाहता हूँ मैं, उड़ के रहूँगा।



खुद को ही खुद में बिखेर देना,
लोगों के बीच खुद को समेट देना,
खुद में इन चीजों को ख़त्म करूँगा,
अब बस उड़ना चाहता हूँ मैं, उड़ के रहूँगा।



खुद में तहजीब को मारा नहीं है मैंने,
बस अब तो सीखा है थोड़ा बेबाक बनना,
अच्छा है या बुरा पर मैं अब ऐसा ही रहूँगा,
अब बस उड़ना चाहता हूँ मैं, उड़ के रहूँगा।


दूसरों को देख कर बहुत सीख लिया अब मैंने
बारी अब खुद के तसव्वुर में जीने की है,
अब तो खुद के तजुर्बों की भी कद्र करूँगा,
अब बस उड़ना चाहता हूँ मैं, उड़ के रहूँगा।


कैसे यकीन दिलाऊ तुझे की बदल गया हूँ मैं,
पुराने खुद को मारा थोड़ी ह खुद में,
बस अब खुद से वादा है की कुछ नया हमेशा सीखा करूँगा,
अब बस उड़ना चाहता हूँ मैं, उड़ के रहूँगा।

ये सब जो आज सोचा है मैंने,
खुद से ली है जिसकी इजाज़त,
उसे अब हर हाल में पूरा करूँगा,
अब बस उड़ना चाहता हूँ मैं, उड़ के रहूँगा।

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