Monday, November 7, 2016

NDTV India ban: First time a news channel barred




NDTV India, जी हाँ ! सही पहचाना आपने | भारत में “रियलिटी शो” (बाकी के न्यूज़ चैनल)से परे, एकलौता न्यूज़ चैनल | जब बाकी के न्यूज़ चैनल, माफ़ कीजियेगा ! “रियलिटी शो” जब अपनी बेबुनियाद ख़बरों से जोश में लातें हैं, तब वही यह चैनल, अपने तर्कों से हमें होश में लाता है |


अब बात करें हाल ही के घटनाक्रम की, तो मैं सरकार के इस फ़ैसले को ग़लत या सही नहीं ठहरा रहा | मैं बस देश के उस एकमात्र न्यूज़ चैनल की प्रतिष्ठा को बरकार रखने (जो की हमेशा रहेगी) की एक छोटी सी कोशिश कर रहा हूँ | आज मेरे जैसे कई लोग सिर्फ़ इस बात से आहत हैं कि इस देश में आज भी “आपके सितारों को परखने वाले”, “ज़ोर ज़ोर से चिल्लाने वाले”, “न जाने कौन कौन सी बेतुकी ख़बर दिखाने वाले” न्यूज़ चैनल्स को तो बढ़ावा दिया जा रहा है |


पर शायद यह क़दम सही भी है, क्योंकि जिस चैनल में सरकार के नुमायिंदों को भावभंगिमा करने की बजाए, तर्कों का सामना करना पड़े, उसका यही हश्र होना उचित है | क्योंकि तर्क और नेतागण ?? छोड़िये जनाब ! अगर तर्कों का ही सामना करने बैठे तो राजनीति कौन करेगा | तर्कों का सामना करने के लिए बुद्धिजीवियों की जरूरत होती है, जिनकी संख्या आज की राजनीति में कम ही है |


खैर ! मैं बाकी न्यूज़ चैनलों के मालिकों से सरकार के रिश्तों पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता | वह उनकी आपसी बातें हैं | पर फिर से एक ज़िम्मेदार और ईमानदार न्यूज़ चैनल के लिए सिर्फ़ इतना कहूँगा, कि आपकी पत्रकारिता में बस तीन निम्नलिखित चीज़ों के कमी है,


1. मसाला


2. थोड़ा झूठ और रोमांच


3. भावभंगिमा


और आख़िर आप कैसे सिर्फ़ “सच और तर्कों की बुनियाद” में पत्रकारिता कर सकतें हैं, यह जाहिर तौर पर ग़लत है ;)


अंत में रविश जी के अंदाज़ में कुछ कहना चाहूँगा,


“कोई नहीं जानता ऐसा क्यूँ होता है, लेकिन सच यही है कि यहाँ यही होता है”

Wednesday, February 17, 2016

कुछ यूँ ही

ख़ुशी में इंसान को गानों की धुन,
और दुखी होने पर गानों के शब्द,
हमेशा ही रास आते हैं

- अल्फ़ाज़-ए-आशुतोष

Sunday, February 7, 2016

एक सोच

मेरे बारे में कोई क्या बातें करता है इससे मुझे कोई फर्क नहीं  पड़ता....क्योंकि लोग भी उसी के बारे में बातें करते हैं जिसने कुछ किया हो।

Monday, January 25, 2016

एक आवाज़

कई बार सोचता हूँ ....लोग हमे किताबें पढ़ने को क्यों कहते हैं...जबकि किताबों में जो लिखा हैं ...वैसा करने पर वही लोग कहते हैं, "ऐसा सिर्फ किताबों में होता है।"