ये किस्सा है याद शहर के मशहूर इंजीन्यरिंग कॉलेज का| नितिन, यही नाम था शायद उस सीधे-साधे
और लड़कियो में हैंडसम लड़को मे काउंट होने वाले उस लड़के का जो कॉलेज के पहले दिन
जूनियरस की लाइन में सबसे पीछे खड़ा था| नितिन कुछ अपने पापा के ऑर्डर पर, कुछ मम्मी की इच्छा और रिश्तेदारों की सलाह और थोड़े बहुत
अपने मन से इस कॉलेज में आया था| नितिन एक मध्यम वर्गीय परिवार का सीधा सा लड़का था जिसका घर
याद शहर से थोड़ा दूर था और वो यहाँ कॉलेज के एक हॉस्टल में बाकी के फ़र्स्ट ईयर और
फोरथ ईयर के साथ रहता था| बाकी के सेकंड ईयर और थर्ड ईयर इसी के सामने के कॉलेज
हॉस्टल में रहते थे|
आज कॉलेज का
पहला दिन था और दस्तूर के मुताबिक सीनियर्स ने जूनियर्स को अपने सीनियर होने का
एहसास दिलाना शुरू कर दिया था| वो कभी भी किसी से इंटरों के लिए कह देते या फिर मज़ाक के
नाम पर जूनियर्स से कुछ न कुछ करवाते रहते थे|
नितिन इन चीज़ो से अब परेशान सा होने लगा था| पहली बार घर और मम्मी-पापा से
दूरी और बात-बात पर सीनियर्स के खौफ़ से नितिन अब जैसे टूटने सा लगा था|
शायद कहीं न कहीं इसकी वजह कॉलेज में हद से ज्यादा होने
वाली पढ़ाई और पेपर्स भी थे| वहाँ स्टूडेंट्स को गधों की तरह काम दे कर पढ़ाई करने पर
मजबूर कर दिया जाता और बात-बात पर फ़ेल करने की धमकी दी जाती थी| हाँलकि और सब को इन
चीज़ो की आदत होने लगी थी पर नितिन अभी भी माँ-बाप की याद, सीनियर्स, पढ़ाई और मेस के खाने के खौफ़ मे ही जी रहा था|
कुछ दिन यूँ ही चलने के बाद कॉलेज मे परीक्षायेँ शुरू हो
गईं थी| इन सब परेशानियों के बीच नितिन
के परीक्षा देने का रिज़ल्ट यह रहा कि वो दो मेंन विषयों में फ़ेल हो गया| इस पर उसके पापा को कॉलेज
बुलवाया गया और उसका रिज़ल्ट बताया गया| घर वापस जाते वक़्त उसके पापा ने बस इतना ही कहा, “बेटा! घर कि अब सारी उम्मीदें
तुम से ही हैं तो हो सके तो हमें कभी निराश मत करना| इन शब्दों के साथ पापा तो घर वापस चले गए पर ये शब्द रात
भर नितिन के कानों में गूँजते रहे|
रात में यूँ ही पढ़ते वक़्त जब नितिन को उन किताबों में कुछ
नहीं समझ आ रहा था तो उसने परेशान होकर किताबें बंद की और रात के करीब 1:00 बजे हॉस्टल की छत पे
जाकर बाउंडरी के पास खड़ा हो गया और न जाने इस बीच कब नितिन की आंखें गीली हो गईं
और परेशानियाँ आँसू बन कर उसकी आंखो में आ गईं|
पर नितिन ने अभी
अपने आँसू पोछें भी नहीं थे कि अचानक उसके कंधे पे किसी ने हाथ रखा और उसे आँसू
पोछने को कहा। नितिन एक पल को डर सा गया और जब पीछे मुड़ा तो उसे रात के अंधेरे में
एक शख्स दिखा। नितिन कुछ पूछता उससे पहले ही उसने कहा कि “आज जिन परेशानियों कि
वजह से तुम रो रहे हो, एक दिन तुम उन पर और अपने इस रोने पर ही हँसोगे।”
नितिन ने बड़ी धीमी सी आवाज मे पूछा, “आपको कैसे पता की मैं कौन सी परेशानी मे हूँ?” इस पर उस शख्स ने
कहा, “मैं राकेश हूँ, फोर्थ ईयर स्टूडेंट और मुझे भी
पता है शुरुआत के दिन कैसे होते हैं। जैसा तुम अभी महसूस कर रहे हो मैं भी ऐसा ही
करता था। तुम्हें ये पता होना चाहिए कि तुम यहाँ पढ़ाई के
साथ-साथ इस तरह की दिक्कतों का सामना करना भी सीखोगे क्यूंकि
इसी का नाम कॉलेज लाइफ है और ये हमेशा फिल्मों में दिखाई गई कॉलेज लाइफ की तरह
नहीं हो सकती।”
इस पर नितिन ने बस इतना कहा, “ये सब मेरे लिए नया है और इसलिए मैं कुछ समझ ही नहीं पा
रहा कि क्या करूँ।”
कुछ पल शांत रह कर राकेश ने उसे दो बॉल दीं, छोटी-छोटी नीलें रंग की और कहा, “इनमे से एक बॉल लाइफ की
खुशियाँ है और दूसरी परेशानियाँ। तुम जब भी परेशान होना तो इन्हे अपनी हथेली पर एक
साथ पकड़ने की कोशिश करना और रोल करना और तुम देखोगे कैसे ये दोनों एक दूसरे को
पीछे कर ऊपर आना चाहतीं हैं और इस तरह तुम परेशानी को परेशान देखकर थोड़ा खुश जरूर
हो सकते हो।”
राकेश ने नितिन से कहा, “अब तुम्हें जाकर सो जाना चाहिए।”
इतना कहने पर जब नितिन जाने लगा तो राकेश ने फिर उसे टोका
और कहा, “नितिन फ़ेल होने से तो कभी डरना
ही मत क्यूंकि तुम्हारे एच.ओ.डी. सर जो तुम्हें मैथ्स पढ़ाते हैं वो अपने टाइम में
खुद दो-चार सबजेक्ट्स में फ़ेल थे, तो कुछ नहीं तो तुम फ़ेल होकर भी इस कॉलेज में फ़ैकल्टि तो
बन ही सकते हो।”
इतना सुन कर नितिन हँस पड़ा और एक मुस्कुराहट के साथ अपने
रूम मे वापस आ गया। अगले दिन से नितिन थोड़ा-थोड़ा खुश रहना सीखने लगा था। हाथों मे
दो बॉल देखकर लोग अब दोस्त उस पर हँसते जरूर थे पर नितिन भी उसकी हँसी में शामिल
हो जाता था।
आज कल राकेश और नितिन कई बार रात को छत पर मिल लेते थे। पर
कुछ दिनो बाद नितिन छुट्टियों में घर चला गया था और जब वापस आने पर जब कई दिनो तक राकेश
सर उसे नही मिले तो उसने सोचा क्यूँ न आज उनके रूम मे ही जाकर उन्हें मिला जाए और
वो थर्ड फ्लोर के रूम नंबर 304 में पहुँच गया जैसा की राकेश उसे बताता था। पर वहाँ
जाकर उसे पता लगा कि वहाँ तो फ़र्स्ट ईयर रहता है न कि कोई फोर्थ ईयर का राकेश।
थोड़ा खोजबीन करने के बाद नितिन को पता चला कि राकेश शर्मा
जैसा कोई फोर्थ ईयर हॉस्टल में नहीं रहता और एक राकेश शर्मा जो कि फोर्थ ईयर में
पढ़ता था उसकी मौत दो साल पहले ही हो चुकी है। एक बार फोर्थ ईयर में फ़ेल हो जाने पर
जब उसे किसी जॉब इंटरव्यू में नहीं बैठने दिया गया तब उसने अपने रूम 304 में
खुदखुशी कर ली थी।
इतना सुनकर नितिन ख़मोश हो गया और फिर कभी छत जाने कि हिम्मत
नहीं कर सका। पर अपने इस अनुभव को उसने कॉलेज में किसी के साथ शेयर नहीं किया और
खुद में ही रखा।
कुछ महीनों बाद नितिन फिर से नॉर्मल होकर कॉलेज लाइफ बिताने
लगा था। अब नितिन सेकंड ईयर मे आ गया था और नियमों के मुताबिक उसे अपने हॉस्टल के
सामने वाले हॉस्टल में शिफ्ट करना पड़ा। एक बार फिर जब कॉलेज में नए स्टूडेंट्स आये
तो उनके साथ फिर से कॉलेज के हर दस्तूर निभाए जाने लगे। अब नितिन भी सीनियर हो
चुका था। एक दिन यूंहि रैगिंग लेते वक़्त नितिन को एक लड़का दिखा जो कि हु-ब-हु वैसा
ही था जैसा कि नितिन जब कॉलेज में आया था। उस लड़के का नाम आकाश था। आकाश भी उसी
हॉस्टल में रह रहा था जहां फ़र्स्ट ईयर में नितिन रह चुका था।
कुछ दिनो तक तो नितिन ने आकाश को आब्ज़र्व किया और उसे हमेशा
परेशान रहता देख उसने सोचा कि कभी समय निकाल कर वो आकाश से बात करेगा और उसे
समझाएगा।
पर जब एक दिन अचानक उसने आकाश को देखा तो वह हैरान सा रह
गया क्यूंकि आकाश आज बहुत खुश था और उसके हाथों में दो वैसी छोटी-छोटी बॉल थीं जैसी
बहुत समय पहले नितिन को किसी ने दीं थीं
और आकाश उन बॉल को हथेली पर रोल कर रहा था।
नितिन ने हैरान हो कर एक पल आकाश को देखा और फिर एक टक उस
फ़र्स्ट ईयर हॉस्टल कि छत को देखता रह गया मानों कोई आखें उसे भी छत से देख रहीं हों।
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